राह-ए-दुश्वार में चलना सीखो रुख़ ज़माने का बदलना सीखो ज़िंदगी ख़ुद ही सँवर जाएगी ग़म के साँचे में तो ढलना सीखो मय-परस्ती की है इस में तौहीन पी लिया है तो सँभलना सीखो तीरगी आप ही छट जाएगी बन के ख़ुर्शीद निकलना सीखो दिल को पत्थर न बनाओ अपने मोम की तरह पिघलना सीखो हो के सरगर्म-ए-अमल ऐ 'शाइर' नज़्म आलम का बदलना सीखो