राह-ए-हयात में दिल-ए-वीराँ दुहाई दे दुश्मन को भी ख़ुदा न ग़म-ए-आश्नाई दे मैं साहिब-ए-क़लम हूँ मुझे ऐ शुऊर-ए-फ़न आए न जो गिरफ़्त में ऐसी कलाई दे दुनिया फ़रेब-ए-रिश्ता-ए-बाहम न दे मुझे जो भाई-चारगी का हो पैकर वो भाई दे मैं अपना हाथ अपने लहू में डुबो न लूँ जब तक वो मेरे हाथ में दस्त-ए-हिनाई दे ख़ंजर है जिस के हाथ में पत्थर है जिस का दिल क्या उस के सामने कोई अपनी सफ़ाई दे जिस पर मिरे लहू ने सजाया था नक़्श-ए-दिल ऐ काश फिर मुझे वो हथेली दिखाई दे इस ताज़ा कर्बला में भी यारब दुआ ये है ईसार को नशेब वफ़ा को तराई दे दूरी क़रीन-ए-मस्लहत-ए-वक़्त है अगर क़ुर्बत के नाम पर मुझे दाग़-ए-जुदाई दे सेहन-ए-चमन में गोश-बर-आवाज़ है 'सबा' शायद दिल-ए-शमीम की धड़कन सुनाई दे