राह-ए-ख़ुदा में आलम-ए-रिन्दाना मिल गया मस्जिद को ढूँडते थे कि मय-ख़ाना मिल गया आग़ाज़-ए-काएनात से जिस की तलाश थी औराक़-ए-ज़िंदगी में वो अफ़्साना मिल गया अहल-ए-जुनूँ को ताब कहाँ सोज़-ए-हुस्न की जलते ही शम्अ' ख़ाक में परवाना मिल गया देखा निगाह-ए-यास से जब गुल-कदे का रंग हर गुल की आड़ में कोई वीराना मिल गया इक इक ज़बान पर मिरी रूदाद है 'शकील' अपनों के साथ क्या कोई बेगाना मिल गया