राहें धुआँ धुआँ हैं सफ़र गर्द गर्द है ये मंज़िल-ए-मुराद तो बस दर्द दर्द है अपने पड़ोसियों को भी पहचानता नहीं महसूर अपने ख़ोल में अब फ़र्द फ़र्द है इस मौसम-ए-बहार में ऐ बाग़बाँ बता चेहरा हर एक फूल का क्यूँ ज़र्द ज़र्द है लफ़्फ़ाज़ियों का गर्म है बाज़ार किस क़दर दस्त-ए-अमल हमारा मगर सर्द सर्द है कैसा तज़ाद शाख़-ए-तमन्ना में है 'असद' ख़ुद ये हरी हरी है समर ज़र्द ज़र्द है