राह-ए-पुर-पेच में गुज़रा वो सफ़र याद आया अश्क पलकों से गिरे ख़ून-ए-जिगर याद आया जिस को नज़रों में बसाए हुए हम रहते थे हमें रह रह के वो बे-मेहर नज़र याद आया हम ने हर राह में ढूँडा उसे हर साँस के साथ वो हर इक मोड़ पे हर शाम-ओ-सहर याद आया एक साया सा रहा साथ मिरे साए के लम्हा लम्हा हमें वो चार पहर याद आया जिस को भूले से कभी भूल न पाए थे कहीं हमें हर बज़्म में वो चश्म-ब-सर याद आया वही अंदाज़-ए-तकल्लुम वही नज़रों में तज़ाद वो मिरा अर्ज़-ए-तमन्ना का असर याद आया बह्र-ए-तूफ़ान-ए-हवादिस में घिरे थे ऐसे लब-ए-साहिल भी वही मद्द-ओ-जज़र याद आया