रह-ए-सफ़र में रहे और हयात से गुज़रे कि एक रंग में कितने जिहात से गुज़रे बड़े सुकून से हम एहतियात से गुज़रे क़दम जमा के चले काएनात से गुज़रे है कोई अज़्म-ए-जवाँ और न कुछ जुनूँ-ख़ेज़ी बे-दस्त-ओ-पा ही रहे मुम्किनात से गुज़रे यक़ीन दिल में रहा तेरी दिलरुबाई का सो जाग जाग के हम सारी रात से गुज़रे कोई नतीजा कहाँ बात का निकल पाया कि एक बात ही क्या बात बात से गुज़रे तग़य्युरात की दुनिया में हम रहे हर दम कि सोते जागते हम भी हयात से गुज़रे कभी न ख़ुद को किया वक़्फ़-ए-इंहिमाक-ए-वजूद 'उबैद' बच के रहे हादसात से गुज़रे