रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची मोहब्बत की दुनिया बयाँ तक न पहुँची बसेरा रहा उस का सेहन-ए-चमन में मगर ये बहार आशियाँ तक न पहुँची उन्हें ख़्वाब में भी न ध्यान आया मिरा ये रूह-ए-हक़ीक़त गुमाँ तक न पहुँची शब-ए-ग़म मिरा दिल था सूली पे लेकिन तमन्ना सरिश्क-ए-रवाँ तक न पहुँची बहारों का तो ज़िक्र ही क्या करूँ मैं गुलिस्तान-ए-दिल में ख़िज़ाँ तक न पहुँची तसव्वुर से आगे तख़य्युल से आगे मिरे दिल की वहशत कहाँ तक न पहुँची रही महव तौफ़-ए-चमन 'बर्क़' अक्सर मगर वो मिरे आशियाँ तक न पहुँची