रही न पुख़्तगी आलम में दूर ख़ामी है By Ghazal << रही न-गुफ़्ता मिरे दिल मे... राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोत... >> रही न पुख़्तगी आलम में दूर ख़ामी है हज़ार हैफ़ कमीनों का चर्ख़ हामी है न उठ तो घर से अगर चाहता है हूँ मशहूर नगीं जो बैठा है गड़ कर तो कैसा नामी है हुई हैं फ़िक्रें परेशान 'मीर' यारों की हवास-ए-ख़मसा करे जम्अ' सो 'निज़ामी' है Share on: