ज़िंदगी हुस्न से ता'बीर भी हो सकती थी चाँदनी दश्त पे तहरीर भी हो सकती थी बे-बस जादा-ए-पुर-ख़ार पे लाई मुझ को बेबसी पाँव की ज़ंजीर भी हो सकती थी एक आवाज़-ए-तिलिस्मात में डूबी आवाज़ ऐसी आवाज़ कि तस्वीर भी हो सकती थी एक साया पस-ए-दीवार भी लहराता था सनसनी इतनी हमा-गीर भी हो सकती थी भागते भागते सब रंग समेटे हम ने वक़्त का फेर है ताख़ीर भी हो सकती थी