रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही बिछड़ के तुझ से मिरी ज़ीस्त बद-हवास रही जो रिंद आया तिरी बज़्म में हुआ सैराब वो तिश्ना-काम रहा मैं कि जिस को प्यास रही तिरी निगाह-ए-करम ने वो गुल खिलाए हैं चमन में फ़स्ल-ए-बहाराँ उदास उदास रही हर एक लहज़ा मिरी धड़कनों में चुभती थी अजीब चीज़ मिरे दिल के आस-पास रही मय-ए-नशात तिरी सादगी ने छलका दी निगाह-ए-इश्क़ को क्या जाने किस की प्यास रही