रहज़न नहीं हरीफ़ नहीं हम-सफ़र नहीं राह-ए-तलब में अहल-ए-हवस का गुज़र नहीं आईन-ए-बज़्म-ए-दहर से तू बे-ख़बर नहीं लेकिन ख़ुदा का शुक्र कि मैं कम-नज़र नहीं हुस्न-ए-निगाह-ओ-कम-नज़री में ये फ़र्क़ है सब बा-हुनर हैं और कोई बा-हुनर नहीं नश्र-ए-जफ़ा-ओ-जौर भी है इक अदा-ए-ख़ास हुस्न-ए-निगाह-ए-लुत्फ़ से मैं बे-ख़बर नहीं नाज़ाँ हैं अपनी हिम्मत-ओ-जुरअत पे राह-रौ ईसार-ए-रहनुमा पे किसी की नज़र नहीं साक़ी की एक बात है तफ़्सीर-ए-काएनात तू कम-नज़र नहीं तो कोई कम-नज़र नहीं अपने ख़ुलूस पर है मुझे 'राज़' ए'तिमाद नश्तर-ज़नी से ग़ैर की मैं बे-ख़बर नहीं