रहने को हम क़फ़स में रहे आशियाँ से दूर लेकिन चमन में थी ये जगह आसमाँ से दूर इस क़ुर्ब से जो सज्दों में तुझ से हुआ मुझे सज्दे भी हैं मुक़ाबलतन आस्ताँ से दूर जितना मैं आशियाँ में क़फ़स से क़रीब था उतना ही अब क़फ़स में हूँ मैं आशियाँ से दूर हासिल न जिस की रूह को हो क़ुर्ब-ए-मय-कदा वो ना-मुराद रहमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ से दूर तुझ से भी दूर तक कोई ऐसी जगह नहीं महफ़िल में अपनी तो नज़र आए जहाँ से दूर इस ना-मुराद से जो तिरे आस्ताँ पे है अच्छा है बद-नसीब जो है आस्ताँ से दूर अब तक कोई बता न सका राह-ए-इश्क़ में मंज़िल कहाँ से पास है 'बिस्मिल' कहाँ से दूर