रहता है हड्डियों से मिरी जो हुमा लगा कुछ दर्द-ए-आशिक़ी का उसे भी मज़ा लगा ग़ाफ़िल न सोज़-ए-इश्क़ से रह फिर कबाब है गर लाएहा उस आग का टक दिल को जा लगा देखा हमें जहाँ वो तहाँ आग हो गया भड़का रखा है लोगों ने इस को लगा लगा मोहलत तनिक भी हो तो सुख़न कुछ असर करे मैं उठ गया कि ग़ैर तिरे कानों आ लगा अब आब-ए-चश्म ही है हमारा मुहीत-ए-ख़ल्क़ दरिया को हम ने कब का किनारे रखा लगा हर-चंद उस की तेग़-ए-सितम थी बुलंद लेक वो तौर बद हमें तो क़यामत भला लगा मज्लिस में उस की बार न मुझ को मिली कभू दरवाज़े ही से गरचे बहुत मैं रहा लगा बोसा लबों का माँगते ही मुँह बिगड़ गया क्या इतनी मेरी बात का तुम को बुरा लगा आलम की सैर 'मीर' की सोहबत में हो गई तालेअ' से मेरे हाथ ये बे-दस्त-ओ-पा लगा