राज़ ये सब पर अयाँ होना ही था सो हो गया मुझ को इक दिन राएगाँ होना ही था सो हो गया दिल को मेरे तेरी हसरत के अधूरे बाब की इक मुकम्मल दास्ताँ होना ही था सो हो गया मिटते मिटते वक़्त के हाथों मुझे भी आख़िरश बे-निशानी का निशाँ होना ही था सो हो गया मस्लहत पर मुनहसिर था सो हमारे रब्त को एक दिन तो राएगाँ होना ही था सो हो गया फ़र्क़ रंग-ओ-नस्ल का था मुझ में तुझ में इस लिए हाइल उस को दरमियाँ होना ही था सो हो गया