रक़्स करती है फ़ज़ा वज्द में जाम आया है फिर कोई ले के बहारों का पयाम आया है बादा-ख़्वारान-ए-फ़ना बढ़ के क़दम लो उस के ले के साग़र में जो सहबा-ए-दवाम आया है मैं ने सीखा है ज़माने से मोहब्बत करना तेरा पैग़ाम-ए-मोहब्बत मिरे काम आया है रहबर-ए-जादा-ए-हक़ नूर-ए-ख़ुदा हादी दें ले के ख़ालिक़ का ज़माने में पयाम आया है तेरी मंज़िल है बुलंद इतनी कि हर शाम-ओ-सहर चाँद-सूरज से तिरे दर को सलाम आया है हो गया तेरी मोहब्बत में गिरफ़्तार तो फिर ताएर-ए-रूह भला कब तह-ए-दाम आया है ख़ुद-ब-ख़ुद झुक गई पेशानी-ए-अर्बाब-ए-ख़ुदी इश्क़ की राह में ऐसा भी मक़ाम आया है आसियो शुक्र की जा है कि ब-फ़ैज़-ए-ख़ालिक़ हम गुनहगारों की बख़्शिश का पयाम आया है हरम-ओ-दैर के लोगों की ख़ुशी क्या कहना बंदा-ए-ख़ालिक़-ओ-दिल-दादा-ए-राम आया है तिश्ना-कामान-ए-नज़ारा को ये मुज़्दा दे दो बे-नक़ाब आज कोई फिर सर-ए-बाम आया है हो मुबारक तुम्हें रिंदो कि ब-ताईद-ए-ख़ुदा कोई छलकाता हुआ शीशा-ओ-जाम आया है जब कभी गर्दिश-ए-दौराँ ने सताया है बहुत तेरे रिंदों की ज़बाँ पर तिरा नाम आया है अहल-ए-मग़रिब को पिला कर मय-ए-इरफ़ाँ 'दर्शन' फिर से मशरिक़ की तरफ़ अर्श-मक़ाम आया है