रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने और फिर भेजे हैं आसेब के लश्कर किस ने शजर-ए-तर न यहाँ बर्ग-ए-शनासा कोई इस क़रीने से सजाया है ये मंज़र किस ने कश्तियाँ कैसे निकल पाएँगी गीली तह से पी लिया चंद ही साँसों में समुंदर किस ने पेशवाई के लिए बिन्त-ए-सबा आई है पा-शिकस्ता हूँ बनाया है क़द-आवर किस ने मेरी बस्ती भी हुई शोला-ज़नी में शामिल ला के छोड़े हैं यहाँ आग के पैकर किस ने