रख़्त-ए-गुरेज़ गाम से आगे की बात है दुनिया, फ़क़त क़याम से आगे की बात है तू रास्ते बिछा न चराग़ों से लौ तराश ये इश्क़ एहतिमाम से आगे की बात है इन पत्थरों के साथ कभी रह के देखिए ये ख़ामुशी कलाम से आगे की बात है मैं ने अदू के ख़ेमे में भेजा है इक चराग़ ये ऐन इंतिक़ाम से आगे की बात है तू आब-ओ-गिल से जिस्म बना, इस्म मत सिखा 'बाबर' ये तेरे काम से आगे की बात है