रम्ज़-ए-हयात आलम-ए-फ़ानी में खो गया मेरा वजूद नक़्ल-ए-मकानी में खो गया क्या जाने क्या कशिश थी तुम्हारे कलाम में जिस ने सुना वो लफ़्ज़-ओ-मआ'नी में खो गया जो दूर तक नहीं थे वही अब हैं सामने किरदार मेरा उस की कहानी में खो गया दरिया से भी कहीं कोई सैलाब जब उठा वो भी इन आँसुओं की रवानी में खो गया जो कुछ कहा नज़र ने नज़र से सुने वो कौन हर शख़्स गुफ़्तुगू-ए-लिसानी में खो गया दुनिया-ए-इल्म-ओ-फ़न में जो हासिल था कल उसे सारा कमाल चर्ब-ज़बानी में खो गया एहसास फिर ज़ईफ़ी में 'रहबर' हुआ उन्हें लुत्फ़-ए-हयात जिन का जवानी में खो गया