रंग और नूर की तमसील से होगा कि नहीं शब का मातम मिरी क़िंदील से होगा कि नहीं देखना ये है कि जंगल को चलाने के लिए मशवरा रीछ से और चील से होगा कि नहीं आयत-ए-तीरा-शबी पढ़ते हुए उम्र हुई सामना अब भी अज़ाज़ील से होगा कि नहीं ज़र्द मिट्टी में उतरती हुई ऐ क़ौस-ए-क़ुज़ह ख़्वाब पैदा तिरी तर्सील से होगा कि नहीं ओस के फूल महकते हैं तिरी आँखों में इन का रिश्ता भी किसी नील से होगा कि नहीं जब सुख़न करने लगूँगा मैं तुझे अस्र-ए-रवाँ इस्तिआरा कोई इंजील से होगा कि नहीं