रंग होने लगे ज़ाहिर मेरे By Ghazal << रौशनी क्या पड़ी है कमरे म... कोई शय है जो सनसनाती है >> रंग होने लगे ज़ाहिर मेरे ध्यान रख कुछ तो मुसव्विर मेरे यूँ न आँखों से हुआ कर ओझल बुझने लगते हैं मनाज़िर मेरे काम आई न ख़मोशी मेरी राज़ खुल ही गए आख़िर मेरे गूँज उठा नग़्मों से आँगन मेरा लौट आए सभी ताइर मेरे Share on: