रंग लाया मिरा बे-बर्ग-ओ-नवा हो जाना इतना आसान न था उस का ख़ुदा हो जाना कौन आवाज़ बरस बन के रहा महमिल-ए-नाज़ किस की क़िस्मत में है सहरा की सदा हो जाना हश्र तक बे-गुनही नाज़ करेगी मुझ पर वो मिरा तेरी निगाहों में बुरा हो जाना मुझ पे वो वक़्त पड़ा है कि शिकायत कैसी तुझ को लाज़िम था ब-हर-हाल ख़फ़ा हो जाना मेरी तक़दीर पे तोहमत ही उठाई जाती तुझ को ज़ेबा न था यूँ ख़ुद से जुदा हो जाना आज तक याद है कैफ़िय्यत-ए-जाँ तेरे हुज़ूर सर से पा तक वो मिरा दस्त-ए-दुआ' हो जाना 'शाज़' काँप उट्ठे मिरे तर्क-ए-मोहब्बत के क़दम वो किसी पुर्सिश-ए-पिन्हाँ का बला हो जाना