रंग तो मौजूद की तस्वीर हो सकते नहीं वो जो मंज़र ख़्वाब हैं ता'बीर हो सकते नहीं क्यूँ मुझे अशआ'र कहने का हुनर उस ने दिया मुझ से मेरे दुख अगर तहरीर हो सकते नहीं आँख में मंज़र तो आ सकते हैं सूरत ओढ़ कर आइने तो अक्स से ज़ंजीर हो सकते नहीं मैं ही अपने दर्द-ओ-ग़म लिक्खूंगा अपने हाथ से ये जनाज़े आप से तहरीर हो सकते नहीं सर्फ़ हो जाएँगे हम उस की मोहब्बत में यूँही सर्फ़ हो जाएँगे हम तस्ख़ीर हो सकते नहीं इस ज़मीं की टोह में रहना हिमाक़त है मियाँ जिस ज़मीं पे शे'र भी ता'मीर हो सकते नहीं गुफ़्तुगू ये कह रही है बात में हल्के हो तुम सो मुरीदी में रहो तुम पीर हो सकते नहीं नींद तो बे-कार में इन कोसनों की ज़द में है ख़्वाब ही ऐसे हैं जो ता'बीर हो सकते नहीं इस को सेहल-ए-मुमतन'अ में बात आएगी समझ 'ज़ेब' ऐसे शे'र तो तफ़्सीर हो सकते नहीं