रंग उस का बदलने वाला है नया सूरज निकलने वाला है मौत की ओट में न हो जाऊँ फिर कोई तीर चलने वाला है भूक पेटों में सरसराने लगी साँप इंसाँ निगलने वाला है सारी ख़िल्क़त है आज सहमी हुई कोई लावा उबलने वाला है कब ये मुमकिन है सच न खुल पाए कब ये तूफ़ान टलने वाला है उस को अपनों की क्या ख़बर है कि जो दर पे ग़ैरों के पलने वाला है अपने ही घर की फ़िक्र है सब को शहर तो सारा जलने वाला है जिस के होंटों पे झूट रहता था आख़िरश सच उगलने वाला है