रंग-ए-गुल और लगा मौज-ए-सबा और लगी किस के आने से गुलिस्ताँ की फ़ज़ा और लगी आज माइल है वो इकराम-ओ-इनायात पे क्या क्यूँ हमें कूचा-ए-जानाँ की हवा और लगी लड़खड़ाने पे किसे रक़्स का होता है गुमाँ फ़स्ल-ए-गुल आई तो फिर लग़्ज़िश-ए-पा और लगी दिल धड़कने के हैं आदाब मगर तेरे हुज़ूर जाने क्यूँ सीने में धड़कन की अदा और लगी किस तरह कहता कोई तुझ को सितमगर ऐ दोस्त सच तो ये है कि हमें तेरी जफ़ा और लगी