रंग-ए-सनम-कदा जो ज़रा याद आ गया टूटीं वो बिजलियाँ कि ख़ुदा याद आ गया हर-चंद दिल को तर्क-ए-मोहब्बत का था ख़याल लेकिन किसी का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया जैसे किसी ने छीन ली रंगीनी-ए-बहार क्या जानिए बहार में क्या याद आ गया रहमत नज़र बचा के निकलने को थी मगर वो इर्तिआ'श-ए-दस्त-ए-दुआ याद आ गया अल्लाह रे सितम कि उन्हें मुझ को देख कर सब कुछ मोहब्बतों के सिवा याद आ गया