रंज और रंज भी तन्हाई का वक़्त पहुँचा मिरी रुस्वाई का उम्र शायद न करे आज वफ़ा काटना है शब-ए-तन्हाई का तुम ने क्यूँ वस्ल में पहलू बदला किस को दा'वा है शकेबाई का एक दिन राह पे जा पहुँचे हम शौक़ था बादिया-पैमाई का उस से नादान ही बन कर मिलिए कुछ इजारा नहीं दानाई का सात पर्दों में नहीं ठहरती आँख हौसला क्या है तमाशाई का दरमियाँ पा-ए-नज़र है जब तक हम को दा'वा नहीं बीनाई का कुछ तो है क़द्र तमाशाई की है जो ये शौक़ ख़ुद-आराई का उस को छोड़ा तो है लेकिन ऐ दिल मुझ को डर है तिरी ख़ुद-राई का बज़्म-ए-दुश्मन में न जी से उतरा पूछना क्या तिरी ज़ेबाई का यही अंजाम था ऐ फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ गुल ओ बुलबुल की शनासाई का मदद ऐ जज़्बा-ए-तौफ़ीक़ कि याँ हो चुका काम तवानाई का मोहतसिब उज़्र बहुत हैं लेकिन इज़्न हम को नहीं गोयाई का होंगे 'हाली' से बहुत आवारा घर अभी दूर है रुस्वाई का