रंज यूँ राह-ए-मसाफ़त में मिले कुछ कमाए कुछ विरासत में मिले ख़्वाब तक में आज-कल रिसने लगे ज़ख़्म हम को जो हक़ीक़त में मिले अब नहीं है ताब दिल से मिलने की क्या पता वो कैसी हालत में मिले एक दूजे से रक़ाबत थी जिन्हें एक दूजे की हिरासत में मिले जो अँधेरों में न शाइस्ता रहे वो उजालों से ख़जालत में मिले फ़लसफ़े जो न सदाक़त में मिले वो सभी हम को ज़रूरत में मिले इस दफ़ा तो ज़िंदगी जल्दी में थी कह दो अगली बार फ़ुर्सत में मिले