रंज-ओ-ग़म से जो बे-ख़बर होता काश ऐसा भी कोई घर होता संग-बारी का ग़म नहीं है मगर एक पत्थर को एक सर होता उस बुलंदी से गिर के रुस्वा हूँ अच्छा होता ज़मीन पर होता उस की लाठी है बे-सदा यारो काश इस बात का भी डर होता ये ज़लालत न झेलनी पड़ती बा-हुनर से जो बे-हुनर होता