कोई ता'मीर की सूरत निकालो कोई ताज़ा बिना-ए-इश्क़ डालो बुलाती हैं तुम्हें यादें पुरानी चराग़-ए-रफ़्तगाँ फ़ुर्सत निकालो मुझे चेहरों से ख़ौफ़ आने लगा है मिरे कमरे से तस्वीरें हटा लो ये दरिया है गुज़र जाना है इस को मुसाफ़िर हो तुम अपना रास्ता लो कहाँ अब वो लिबास-ए-वज़अ'-दारी बहुत जानो अगर ग़ुर्बत छुपा लो वफ़ा क़ीमत नहीं जो लौट आए तुम अपना अज़-सर-ए-नौ जाएज़ा लो नहीं आज़ार-ए-जाँ कोई तो मिर्ज़ा किसी दीवार का साया उठा लो