दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है बड़ा बे-रहम होता है बड़ा बेबाक होता है ख़ुशी होगी हलाक अपना दिल-ए-सद-चाक होता है कहाँ अब आरज़ू घर हसरतों का ख़ाक होता है तुम्हारी तेग़ मुझ से चुपके चुपके कहती जाती है मुबारक हो कि ये सर ज़ीनत-ए-फ़ितराक होता है तुझे अल्लाह ने बख़्शा है कैसा रुतबा-ए-आली कि तेरा नक़्श-ए-पा ताज-ए-सर-ए-अफ़्लाक होता है क़रीब आया है वक़्त ऐ जान-ए-जाँ अब दम निकलने का तिरे कूचे से हम उठते हैं झगड़ा पाक होता है जो पीते हैं शराब उन की मोहब्बत में नहीं आसी ये तर-दामन वही हैं जिन का दामन पाक होता है ख़याल आता है बदनामी का आशिक़ क़त्ल होते हैं कि माशूक़ों को नाम-ए-आशिक़ी से पाक होता है असर से मेरी वहशत के कोई जामा नहीं साबित मैं सुनता हूँ गरेबाँ हर कफ़न का चाक होता है मैं कह देता हूँ हो आ कर ज़ुल्फ़ के कूचे में दम-भर को किसी दिन जब बहुत मुज़्तर दिल-ए-ग़मनाक होता है पहुँच जाए हक़ीक़त तक तिरी ये ग़ैर-मुमकिन है बहुत गो तुझ से वाक़िफ़ साहब-ए-इदराक होता है 'रशीद'-ए-ज़ार क्यूँ ख़ुश ख़ुश न जाए क़ब्र की जानिब मयस्सर आज दीदार-ए-शह-ए-लौलाक होता है