शुरूअ' अहल-ए-मोहब्बत के इम्तिहान हुए अब उन को नाज़ हुआ है कि हम जवान हुए सभों की आ गई पीरी जो तुम जवान हुए ज़मीं का दिल हुआ मिट्टी ख़म आसमान हुए ग़ज़ब से कम नहीं होता वफ़ूर-ए-रहमत भी मैं डर गया वो ज़ियादा जो मेहरबान हुए अरे ज़रा मिरे दिल से ये कोई पूछ आए उसी तरह वो ख़फ़ा हैं कि मेहरबान हुए खिला नया कोई गुल दूर दूर पहुँची बू न क्यूँ जहाँ में हो शोहरत कि वो जवान हुए दिल-ओ-जिगर की जगह दाग़ तक नहीं बाक़ी जो नाम-दार पड़े थे वो बे-निशान हुए दिल-ओ-जिगर में नहीं जान-ए-तन का ज़िक्र है क्या हमारे मरने से ख़ाली कई मकान हुए गुज़िश्तगाँ के जो क़िस्से बयान करते थे अब उन के ज़िक्र भी कानों को दास्तान हुए एवज़ नमाज़-ए-जनाज़ा के मेरे लाशे पर तमाम क़िस्सा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा बयान हुए गया दिल उस का वो आ बैठे जिस के पहलू में बस उस की जान गई जिस पे मेहरबाँ हुए वो क़त्ल करते मगर रहम आ गया है 'रशीद' ये मेरे नाले मिरे वास्ते अमान हुए