रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ जब भी दिल पर चमक उठ्ठे तिरे क़दमों के निशाँ कौन गुज़रा है महक बन के दयार-ए-दिल से इतनी गुल-पोश थीं कब शहर-ए-तलब की गलियाँ तेरी तस्वीर के परतव नहीं मिटने पाते एक मुद्दत से है दिल कारगह-ए-शीशा-गराँ आज उस मोड़ पे है शहर-ए-तमन्ना आबाद तिरा दामन निगह-ए-शौक़ ने चूमा था जहाँ मैं तिरे दर्द की कुल्फ़त को कहाँ ले आया मेरे हमराह धड़कता है दिल-ए-कौन-ओ-मकाँ इतनी मद्धम तो नहीं है मिरी फ़रियाद की लय इन सलासिल की सदा गूँजेगी ज़िंदाँ ज़िंदाँ वक़्त आएगा कि दोहराएँगे ख़ुद अहल-ए-जफ़ा मैं ने जो गीत सुनाए हैं सर-ए-नोक-ए-सिनाँ मौज-दर-मौज उभरते हैं तमन्ना के सराब मेरी तिश्ना-दहनी में हैं समुंदर पिन्हाँ मैं वो अश्कों का भिकारी हूँ सर-ए-राह-ए-वफ़ा जिस की ठोकर में रहा मरहला-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ मैं वो सौदाई-ए-गुल हूँ कि मिरी आँखों ने सीना-ए-ग़ार में देखी हैं मचलती कलियाँ ग़म के लम्हों का तअ'य्युन कभी सोचा तो 'नसीम' एक इक पल से मुझे झाँक रही थीं सदियाँ