रस्म है ये दुनिया की खेल है ये क़िस्मत का चाहते जिसे हम हैं वो नहीं है चाहत का जिस ने हिज्र काटा है बस वो जान सकता है ज़ख़्म सिल नहीं सकता दर्द है वो शिद्दत का आँख मर तो जाती है जीने की तमन्ना में और वो नहीं मरता जो है ख़्वाब हसरत का जो लिखा लकीरों में उस को पूरा होना है वक़्त टल नहीं सकता हर घड़ी मुसीबत का सिर्फ़ क़स्में वा'दे हैं और वक़्त पड़ने पर साथ भी नहीं देता अब कोई मोहब्बत का