रस्म ही नींद की आँखों से उठा दी गई क्या या मिरे ख़्वाब की ताबीर बता दी गई क्या आसमाँ आज सितारों से भी ख़ाली क्यूँ है दौलत-गिर्या-ए-जाँ रात लुटा दी गई क्या वो जो दीवार थी इक इश्क़-ओ-हवस के माबैन मौसम-ए-शौक़ में इस बार गिरा दी गई क्या अब तो इस खेल में कुछ और मज़ा आने लगा जान भी दाव पे इस बार लगा दी गई क्या आज दीवाने के लहजे की खनक रौशन है उस की आवाज़ में आवाज़ मिला दी गई क्या आज बीमार के चेहरे पे बहुत रौनक़ है फिर मसीहाई की अफ़्वाह उड़ा दी गई क्या