रास्ते घर तमाम पत्थर के हर तरफ़ ताम-झाम पत्थर के वो लगा शौक़-ए-बुत-परस्ती का हो गए हम ग़ुलाम पत्थर के देर तक मैं हँसा जो देखा दैर पत्थरों के मक़ाम पत्थर के वो हरम तेरा मेरा बुत-ख़ाना सब की जड़ हैं ये नाम पत्थर के क्या हुआ आज तेरी महफ़िल में हम को आए सलाम पत्थर के