रस्ते कितना थक जाते हैं फिर भी मंज़िल तक जाते हैं पत्तों को आराम नहीं है कान हवा के पक जाते हैं लम्हों को आसान न लेना लम्हे सदियाँ फ़क़ जाते हैं एक तरफ़ से तुम आते हो चारों ओर धड़क जाते हैं एक मोअ'त्तर याद के झोंके ताज़ा लम्स छिड़क जाते हैं क़दमों की आदत है यूँही सू-ए-यार सरक जाते हैं जाने दो लोगों की बातें कुछ भी आ कर बक जाते हैं रस्ता गर भी शर्त नहीं है रस्ते आप भटक जाते हैं आँखें चौखट हो जाती हैं मौसम बे-दस्तक जाते हैं