रात झटके से मिरी नींद खुली टूट गई काँच की चीज़ थी टेबल से गिरी टूट गई शो'बदा-बाज़ ने ग़ाएब किया मंज़र से मुझे बे-घरी छूट गई और छड़ी टूट गई ख़ामुशी नाम की इक शय है मिरे सीने में तू मुझे हाथ लगा देख अभी टूट गई क़हक़हा दाइमी था मेरा मिरे पास रहा मातमी चुप जो मिरी नाम की थी टूट गई साँस दीवार है जीवन की बहुत ख़स्ता मिज़ाज दो मिनट टेक लगे और भली टूट गई तुम से इस वास्ते मानूस नहीं होता मैं जो कोई चीज़ मुझे अच्छी लगी टूट गई ज़िंदगी तोहफ़ा मिली जिस को नहीं सर्फ़ किया बंद डब्बे में नई चीज़ पड़ी टूट गई इक ज़रा रंज नहीं अपनी हलाकत का मुझे दुख तो ये है तिरी ख़ामोश रवी टूट गई