रौ में जज़्बों की बह गए हम लोग ख़ुश्क साहिल पे रह गए हम लोग ज़ुल्मत-ओ-नूर के किनाए में बात नाज़ुक सी कह गए हम लोग हर मुसाहिब बहुत ख़जिल पाया जब कभी पेश-ए-शह गए हम लोग मुनअ'किस थी तिरी ज़िया हम में तू जो डूबा तो कह गए हम लोग इस तनासुब से हम सुबुक ठहरे जिस क़दर सू-ए-मह गए हम लोग