रौनक़-ए-अर्ज़-ओ-समा शम्स ओ क़मर मैं ही हूँ ग़ौर से देखिए ता-हद्द-ए-नज़र मैं ही हूँ हो लिए सारे तमाशाई किसी मंज़िल के रह गया मैं सो सर-ए-राहगुज़र मैं ही हूँ मुझ से मत पूछ कि किस तरह से उजड़ी बस्ती मुझ को बस देख ले रूदाद-ओ-ख़बर मैं ही हूँ मैं भी मुहताज-ए-मसीहाई तिरा हूँ लेकिन मत इधर आ कि मिरी जान इधर मैं ही हूँ मिरे मल्बूस हैं किम-ख़्वाब के पैवंद लगे ख़्वाब में शाम का ताबीर-ए-सहर मैं ही हूँ कश्तियाँ लिखती रहें रोज़ कहानी अपनी मौज कहती ही रही ज़ेर-ओ-ज़बर मैं ही हूँ वुसअत-ए-कारगह-ए-शीशागरी मआज़-अल्लाह ख़ाक मैं जाम भी मैं दस्त-ए-हुनर मैं ही हूँ