रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं बाक़ी कैसे कह दूँ कि घर नहीं बाक़ी उस को देखा है उस की नज़रों से जैसे अपनी नज़र नहीं बाक़ी रहनुमाओं ने इस क़दर लूटा अब लुटेरों का डर नहीं बाक़ी हर मुसाफ़िर से रास्तों ने कहा ज़ुल्मतों में सहर नहीं बाक़ी दिल तो महरूम-ए-सिद्क़ लगता है और दुआ में असर नहीं बाक़ी मैं ने अख़बार पढ़ लिया 'आशिक़' कोई ताज़ा ख़बर नहीं बाक़ी