रौनक़-ए-दामन-ए-सद-चाक कहाँ से लाएँ शहर में दश्त की पोशाक कहाँ से लाएँ हालत-ए-जज़्ब में इदराक कहाँ से लाएँ ज़हर के वास्ते तिरयाक कहाँ से लाएँ गर्द-हा-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक कहाँ से लाएँ इस क़दर गर्दिश-ए-अफ़्लाक कहाँ से लाएँ पानी ले आए हैं अब एक नई उलझन है कूज़ा-गर तेरे लिए ख़ाक कहाँ से लाएँ चेहरा-मोहरा तो बहर-हाल दमक ही लेगा ताबिश-ए-चश्मा-ए-नम-नाक कहाँ से लाएँ तुझ को बिल्कुल नहीं एहसास-ए-हुनर ऐ दरिया अब तिरे वास्ते तैराक कहाँ से लाएँ ख़ाक-ज़ादे हैं सो बस एक ही रंगत है नसीब ख़ुद में सद-रंगी-ए-अफ़्लाक कहाँ से लाएँ हम भी जी भर के तुझे कोसते फिरते लेकिन हम तिरा लहजा-ए-बे-बाक कहाँ से लाएँ