रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है शाइ'र हूँ मुझे अर्श-ए-मुअल्ला की ख़बर है दरिया में हैं गिर्दाब किनारे पे बगूले आराम की सूरत न इधर है न उधर है पत्ते की खड़क से भी लरज़ता है मिरा दिल साए से भी ख़तरा मुझे दौरान-ए-सफ़र है इक मौज भी रखती है किनारे की तमन्ना आवारा जो फिरता हूँ ये मेरा ही जिगर है इक ताइर-ए-महसूर असीरी का मुख़ालिफ़ उड़ सकता है बाज़ू में अगर एक भी पर है मौजों को पता क्या है समुंदर को ख़बर क्या किस अब्र की शोख़ी है सदफ़ में जो गुहर है क्या अश्क किसी टूटते तारे पे बहाऊँ ख़ुद अपना ही अंजाम 'फ़लक' पेश-ए-नज़र है