रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं जिस्म-ए-अफ़्लाक में हम सूरत-ए-जाँ रहते हैं हैं दिल-ए-दहर में हम सूरत-ए-उम्मीद-ए-निहाँ मिस्ल-ए-ईमाँ रुख़-ए-हस्ती पे अयाँ रहते हैं जो न ढूँडो तो हमारा कोई मस्कन ही नहीं और देखो तो क़रीब रग-ए-जाँ रहते हैं हर-नफ़स करते हैं इक-तरफ़ा तमाशा पैदा हम सर-ए-दार भी तज़ईं जहाँ रहते हैं और भी अहल-ए-नज़र हैं कभी देखो तो सही हम भी इस शहर में ऐ कम-नज़राँ रहते हैं दिल की धड़कन से मिला उन का पता कुछ हम को किस को मालूम था वर्ना वो कहाँ रहते हैं वुसअ'त-ए-दश्त नहीं रास चमन-ज़ादों को हम तिरे शहर की जानिब निगराँ रहते हैं अश्क गिरते हैं तो कुछ दिल को सकूँ मिलता है हाए वो लोग जो महरूम-ए-फ़ुग़ाँ रहते हैं ज़िंदगी-भर का है अहबाब से इस दश्त में साथ मिस्ल-ए-जाँ रहते हैं हम 'अर्श' जहाँ रहते हैं