रौशनी चश्म-ए-ख़रीदार में आती ही नहीं कुछ कमी रौनक़-ए-बाज़ार में आती ही नहीं उस से कुछ ऐसा तअल्लुक़ है कि शिद्दत जिस की किसी पैराया-ए-इज़हार में आती ही नहीं जो नहीं होता बहुत होती है शोहरत उस की जो गुज़रती है वो अशआ'र में आती ही नहीं सख़्त हैराँ हूँ सलाहिय्यत-ए-ख़ैबर-शिकनी वारिस-ए-हैदर-ए-कर्रार में आती ही नहीं तुम ने देखी है अजब कैफ़ियत-ए-चश्म 'सिराज' बात वो नर्गिस-ए-बीमार में आती ही नहीं