रौशनी ले कर अँधेरी रात में निकला न कर रात पर्दे के लिए है ख़ुद को बे-पर्दा न कर दहर का फैलाव भी नुक़्ता नज़र आने लगे शेर कहता है तो कह इतना मगर सोचा न कर एक दिन तू भी किसी तारे से टकरा जाएगा दोस्त मेरे रात की गलियों में यूँ घूमा न कर चाँद भी उतरा था पिछली शब इसी तालाब में क्यूँ चमकता है नहा धो कर बदन पोंछा न कर आइना चमकाए रख सब कुछ नज़र आ जाएगा जिस की चाहत हो उसे ख़ुद से जुदा समझा न कर दोपहर की लहर चेहरे को झुलस देगी 'ख़लील' घर की ठंडक छोड़ कर पेड़ों तले बैठा न कर