रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे आख़िर-ए-शब सोचते हैं क्या करेंगे वो सुनहरी धूप अब छत पर नहीं है हम भी आईने को अब अंधा करेंगे जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है ख़ून बन जाए तो फिर ठंडा करेंगे घर से वो निकले तो बस-स्टैंड तक ही उस का साया बन के हम पीछा करेंगे आँख पथरा जाएगी ये जानते हैं फिर भी इस मंज़र में हम खोया करेंगे