रौशनी वाले वसीले की लगी रहती है

रौशनी वाले वसीले की लगी रहती है
बस अंधेरे को मिटाने की लगी रहती है

वो जो गौहर है समुंदर में उतर जाता है
सिर्फ़ सीपी को किनारे की लगी रहती है

आँख वालों में बसारत की कमी है शायद
जब ही अंधों को दिखावे की लगी रहती है

फिर किसी नक़्श-ए-कफ़-ए-पा को मिटाने के लिए
राह को ख़ाक उड़ाने की लगी रहती है

ज़र्द मौसम में गुलाबों की तमन्ना कर ली
जिस तरह धूप में साए की लगी रहती है

ख़्वाब बुनती थीं मगर आँखों को अब शाम ढले
दर की दस्तक की दरीचे की लगी रहती है

धूप-मौसम में बरस जाती है बारिश अक्सर
उस को ख़ुशियों में भी रोने की लगी रहती है

फिर तवज्जोह नहीं जाती तिरी ख़फ़्गी की तरफ़
आँसुओं को तिरे शाने की लगी रहती है


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