रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है हम से और उन से वही बात चली जाती है उस जफ़ा-जू से बा-ईमा-ए-तमन्ना अब तक हवस-ए-लुत्फ़-ओ-इनायात चली जाती है मिल ही जाते हैं पशीमानी-ए-ग़म के अस्बाब शौक़-ए-हिरमाँ की मुदारात चली जाती है हम से हर-चंद वो ज़ाहिर में ख़फ़ा हैं लेकिन कोशिश-ए-पुर्सिश-ए-हालात चली जाती है दिन को हम उन से बिगड़ते हैं वो शब को हम से रस्म-ए-पाबंदी-ए-औक़ात चली जाती है उस सितमगर को सितमगर नहीं कहते बनता सई-ए-तावील-ए-ख़यालात चली जाती है निगह-ए-यार से पा लेते हैं दिल की बातें शोहरत-ए-कश्फ़-ओ-करामात चली जाती है हैरत-ए-हुस्न ने मजबूर किया है 'हसरत' वस्ल-ए-जानाँ की यूँही रात चली जाती है