रवानी हूँ रवानी को ठहर जाना नहीं आता सरापा ज़िंदगी हूँ मुझ को मर जाना नहीं आता दो-आलम को अबद तक अपनी ख़ुश्बू से बसाऊँगा मुझे टहनी प मुरझा कर बिखर जाना नहीं आता हर अफ़्सुर्दा कली को गुदगुदाऊँगा हँसाऊँगा मुझे मिस्ल-ए-सबा सन से गुज़र जाना नहीं आता मैं गिर्दाबों में घूमूँगा मैं तूफ़ानों से खेलूँगा लब-ए-दरिया मुझे डर डर के मर जाना नहीं आता नहीं जाता ग़म-ए-उल्फ़त नहीं जाता नहीं जाता इसे आना तो आता है मगर जाना नहीं आता