रविश रविश पे उसे गुल्सिताँ में फूल मिले मगर मुझे तो हर इक गाम पर बबूल मिले ख़ुदा के नाम पे करते हैं गुमरही पैदा जहाँ में ऐसे भी कुछ नाएब-ए-रसूल मिले हयात-ए-शौक़ चमक जाए कहकशाँ की तरह अगर जबीं को तिरे आस्ताँ की धूल मिले निसार जाइए इस एहतिमाम-ए-गुलशन के क़दम क़दम पे जहाँ ख़ार बन के फूल मिले रहे हमेशा मुझे अपनी जान से भी अज़ीज़ रह-ए-हयात में ऐसे भी कुछ उसूल मिले न पूछ मकतब-ए-दीवानगी का फ़ैज़ 'कमाल' जो मशवरे भी मिले काबिल-ए-क़ुबूल मिले